********वक़्त नहीं*******

हर  ख़ुशी  है  लोगों  के  दामन  में ,
पर  एक  हंसी  के  लिए  वक़्त  नहीं .
दिन  रात  दौड़ती  दुनिया  में ,
ज़िन्दगी  के  लिए  ही  वक़्त  नहीं .

माँ  की  लोरी  का  एहसास  तो  है ,
पर  माँ  को  माँ  कहने  का  वक़्त  नहीं .
सारे  रिश्तों  को  तो  हम  मार  चुके ,
अब  उन्हें  दफ़नाने  का  भी  वक़्त  नहीं .

सारे  नाम  मोबाइल  में  हैं ,
पर  दोस्ती  के  लिए  वक़्त  नहीं .
गैरों  की  क्या  बात  करें ,
जब  अपनों  के  लिए  ही  वक़्त  नहीं .
आँखों  में  है  नींद  बड़ी ,
पर  सोने  का  वक़्त  नहीं .
दिल  है  ग़मों  से  भरा  ,
पर  रोने  का  भी  वक़्त  नहीं .

पैसों  की  दौड़  में  ऐसे  दौड़े ,
की  थकने  का  भी  वक़्त  नहीं .
पराये  एहसासों  की  क्या  कद्र  करें ,
जब  अपने  सपनो  के  लिए  ही  वक़्त  नहीं .

तू  ही  बता  ए  ज़िन्दगी ,
इस  ज़िन्दगी  का  क्या  होगा ,
की  हर  पल  मरने  वालों  को ,
जीने  के  लिए  भी  वक़्त  नहीं ........