बेशर्मी अब बुरी आदत नहीं कहलाती


खौफ आसमान से बिजली गिरने का नहीं है,
डर जमीन के धसकने का भी नहीं है,
नहीं घबड़ाते सांप के जहर से
फिर भी दिल घबड़ाता है
इस बात से
रोज मिलने वाले इंसानों में
कोई शैतान तो नहीं है।
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लोग नहीं बदलते चेहरा
बस, बयान बदल देते हैं,
बेशर्मी अब बुरी आदत नहीं कहलाती
कुछ मजबूरी
कुछ व्यापार बन गयी हैं बेदर्दी
लोग हालत बदलने के बहाने
अपनी अदायें बदल देते हैं।
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संकलक लेखक  एवं संपादक-दीपक   ‘भारतदीप’,ग्वालियर