वो ना समझा जिसे हम समझाते रहे


वो ना समझा जिसे हम समझाते रहे,
सारी दुनिया से हम भी छुपाते रहे |

वो ना समझा मेरी दिल के उस राग को ,
पेड़ पौधे भंवर भी जिसे गुनगुनाते रहे |

वो कहता रहा बनव्Iऊंगा एक महल तेरे वास्ते
छोटे छोटे घरोंदे हम भी बनाते रहे |

सारी दुनिया की नज़रों में मैं गिर गया,
वक़्त बेवक़्त मुझे वो भी आजमाते रहे |

वो करता रहा किसी बड़े हादसे का इंतज़ार,
छोटे छोटे जख्म हम भी छुपाते रहे |

वो लिखता ही रहा एक गीत मेरे वास्ते,
छोटे छोटे शेर हम भी गुनगुनाते रहे |

हसरतो के बदल फिर से छाने लगे है


हसरतो के बदल फिर से छाने लगे है.
वो ख्यालो में फिर मेरे आने लगे है

मौसम बहारो का नहीं है फिर भी
गुल पतझड़ में खुशबू बिखराने लगे है

कोई न कोई बात है उनके दिल में
हमारी गली में जो वो आने लगे है

बिना पिए ही जाने किसके असर से
कदम उनके अब डगमगाने लगे है

निगाहों में उनकी जाने कैसी कशिश है
ख्याल उन तक ही बस जाने लगे है

जो किया ‘सखी’ उनसे सवाल हमने
नए नए बहाने कई वो बनाने लगे है.....