हसरतो के बदल फिर से छाने लगे है


हसरतो के बदल फिर से छाने लगे है.
वो ख्यालो में फिर मेरे आने लगे है

मौसम बहारो का नहीं है फिर भी
गुल पतझड़ में खुशबू बिखराने लगे है

कोई न कोई बात है उनके दिल में
हमारी गली में जो वो आने लगे है

बिना पिए ही जाने किसके असर से
कदम उनके अब डगमगाने लगे है

निगाहों में उनकी जाने कैसी कशिश है
ख्याल उन तक ही बस जाने लगे है

जो किया ‘सखी’ उनसे सवाल हमने
नए नए बहाने कई वो बनाने लगे है.....
                                                  

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