एतबार हमारा करना,

ता-उम्र बस आपके हैं एतबार हमारा करना,
ख़ुशी में चाहे भुला दो गम में पुकारा करना.

हम सर-ए-राह बिखर जायेंगे खुश्बू बनकर,
किस पहर गुज़रोगे महज़ इक इशारा करना.

लड़खड़ा गर जाऊं कभी ज़िन्दगी के मोड़ों पे,
हाथ मेरा तुम ही थामना और सहारा करना.

इन्साँ ही हूँ खता करना है शुमार फितरत में,
इनायत ये जारी रहे हम पे न किनारा करना.

कामयाब कर ही देगा आपका इश्क नादाँ को,
फिर आप भी एहल-ए-जुनूँ का नज़ारा करना.

स्याह रात भी तड़पाती है आपका नाम लेकर,
चिराग-ए-इश्क का इन रातों में शरारा करना.

बड़े अज़ाब से संभाल पाया हूँ खुद को टूटने से,
अब कभी सवाल-ए-फ़िराक़ ये न दोबारा करना.

'आदि' ना खोलेगा आपके हुज़ूर में ज़ुबाँ अपनी,
जवाब-ए-सवाल-ए-वस्ल आप भी गवारा करना.

                                            आदित्य.

जब मैं छोटा था



जब मैं छोटा था,
शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी...
मुझे याद है मेरे घर से "स्कूल" तक का वो रास्ता,
क्या क्या नहीं था वहां,
छत के ठेले, जलेबी की दुकान, बर्फ के गोले, सब कुछ,
अब वहां "मोबाइल शॉप", "विडियो पार्लर" हैं, फिर भी सब सूना है....
शायद अब दुनिया सिमट रही है......

जब मैं छोटा था,
शायद शामे बहुत लम्बी हुआ करती थी....
मैं हाथ में पतंग की डोर पकडे, घंटो उडा करता था,
वो लम्बी "साइकिल रेस", वो बचपन के खेल,
वो हर शाम थक के चूर हो जाना,
अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है..........
शायद वक्त सिमट रहा है........

जब मैं छोटा था,
शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुज़ोम बनाकर खेलना,
वो दोस्तों के घर का खाना, वो साथ रोना,
अब भी मेरे कई दोस्त हैं, पर दोस्ती जाने कहाँ है,
जब भी "ट्रेफिक सिग्नल" पे मिलते हैं "हाय" करते हैं,
और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं....
                                                                      Durgesh.