हम अजनबी मिले तो थे ...


हम अजनबी मिले तो थे ...
फिर ना जाने कैसे
एक दिन ऐसा लगा
एक परछाई प्रकट हुई है कहीं से
और मेरे संग चल निकली
कभी वो मेरे आगे
कभी में उसके पीछे
वो मेरी हमसफ़र बनी
में उसका ही साया बनी
फिर अजनबी कैसे रहते
हम एक दुसरे से भला
तब जाना हमने एक दुसरे कों
और एक दुसरे कों पढ़ा
जाना, जो मुझमे है वो
वोही उसका भी ख्याल है
जो हाल मेरा है यहाँ
वोही उसका भी तो हाल है

वो ना समझा जिसे हम समझाते रहे



वो ना समझा जिसे हम समझाते रहे,
सारी दुनिया से हम भी छुपाते रहे |

वो ना समझा मेरी दिल के उस राग को ,
पेड़ पौधे भंवर भी जिसे गुनगुनाते रहे |

वो कहता रहा बनव्lऊंगा एक महल तेरे वास्ते
छोटे छोटे घरोंदे हम भी बनाते रहे |

सारी दुनिया की नज़रों में मैं गिर गया,
वक़्त बेवक़्त मुझे वो भी आजमाते रहे |

वो करता रहा किसी बड़े हादसे का इंतज़ार,
छोटे छोटे जख्म हम भी छुपाते रहे |

वो लिखता ही रहा एक गीत मेरे वास्ते,
छोटे छोटे शेर हम भी गुनगुनाते रहे |