हम अजनबी मिले तो थे ...
फिर ना जाने कैसे
एक दिन ऐसा लगा
एक परछाई प्रकट हुई है कहीं से
और मेरे संग चल निकली
कभी वो मेरे आगे
कभी में उसके पीछे
वो मेरी हमसफ़र बनी
में उसका ही साया बनी
फिर अजनबी कैसे रहते
हम एक दुसरे से भला
तब जाना हमने एक दुसरे कों
और एक दुसरे कों पढ़ा
जाना, जो मुझमे है वो
वोही उसका भी ख्याल है
जो हाल मेरा है यहाँ
वोही उसका भी तो हाल है
2 comments:
ati sundar bhaai ji
arganikbhagyoday.blogspot.com
nice one
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