टूटते तारों के असर की वो अदाएँ याद हैं,
बाहों मे सिमटने वाली वो हवाएं याद हैं,
ख्वाबों के फूलों पर थिरकती थी ख्वाहिशों की बूंदे,
आज प्यासे हैं लब,
फिर भी उनकी तरावट याद है,
ना जाने कितनी मासूम कोशिशें की
हमने पानी पर नाम लिखने की,
पर हर बार बहते अक्षरों की
वो मिटती लकीरे याद हैं,
दिलों के प्याले तंग हैं,
और गम हैं सिरों तक भरे हुए,
कहीं छलक ना जाए ज़िंदगी,
अब बस यही दुआएँ याद हैं,
टूटते तारों के असर की वो अदाएँ याद हैं.............
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